मेरी दबी हॅसी | Meri dabi hasi




मेरी दबी हॅसी 


मेरी शामें रूकसत सी रहती है ।

मेरी दबी हॅसी अक्सर मुझसे कहती है ।

कहाँ खोया हुआ मन तु रहता है ।

क्यों ना मुझसे सब कहता है ।।


क्या हुआ जो वो तुझसे रूठा है ।

खास था पर कहाँ जग से छुटा है ।

भूल जा बुरे लम्हों को मस्त रहा कर ।

कोई ना मिले कहने को मुझे कहा कर ।।


मैं शांत शीतल सब औझल करने वाली ।

सुरज की तेज गर्मी को भी हरने वाली ।

तेरे प्रताप, आवेश को भी हर लूँ ।

आ पास बैठ मैं तेरे दिन की सुन लूँ ।।


खुलकर हॅस मुझे दबाये रख ना ज्यादा ।

मुझे छुपाने से घट रहा वजन आधा ।

कहूँ तुझसे तु मान लिया कर ।

हॅसकर हरपल मेरे साथ जीया कर ।।


मैं दबी हॅसी तुझे याद करती हूँ ।

हर शाम और सुबह तुझसे दूर रहती हूँ ।

दिन भर और व्यस्त रह कहीं खोया तु रहता है ।

कोई पूछे मन तुझे तु झूठ कहता है ।।


आ पास साथ जी ले हम ।

शाम के मनमोहक दृश्य सी ले हम ।

किसी की जरूरत फिर हमें कहाँ ।

स्वार्थ भरे जग में मन का कहाँ ।।


आ हॅस ले साथ में फिर ।

शामें गुजर रही और उम्र के दिन ।

ढलते दिन शामें रूकसत करती है ।

मुस्कुरा हमेशा जिन्दगी कहती है ।।


Kavitarani1 

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