पीड़ा मन की | pida man ki
पीड़ा मन की
दूर कहीं गयी होती आवाज ये मन की तो,
सुनता कोई पीड़ा बड़ी हरजाई है ।
बही होती भीड़ में आँख तो,
कहती दुनिया पीर से भर आई है ।
देखी होती चोट कहीं लगी हुई तो,
समझ आती दर्द से काया रोई है ।।
पीर पराई समझता कोई तो,
पढ़ लेता चेहरे के उड़े रंग को,
दर्द भरी कराह करी होती किसी ने तो,
अहसास करता दर्द सहा मैंने जो ।
खाई होती ठोकर किसी ने तो,
समझ सकता आगे है करना जो ।।
ये दुनिया बड़ी फरेबी है,
मोह की भूखी और रूखी है ।
आ जाती है सावन में मस्त मगन होने,
पतझड़ में छोड़ती अकेली है ।
मतलब की यारी करती,
बस सुख तक साथ रहती है ।।
साहस की चादर ओढ़ी होती तो,
दुख का जाड़ा गुजर जाता ।
धैर्य की पौशाक पहनी होती तो,
असमंझस से निपट जाता ।
लक्ष्य की यारी की होती तो,
एकान्त कभी नहीं पाता ।
मन की मन को कही होती तो,
जग में मन भटकता ना जाता ।।
Kavitarani1
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