साजना कब आओगे | Saajna kab aaoge
साजना कब आओगे
साँस दबने लगी है, जी मचल रहा है ।
बैचेनी खाये जा रही है, तुझसे मिलने की लगी है ।
आओगे कब ओ साजना, मन पुछ रहा है ।
आओगे कब ओ बालमा, मन को सुकुन नहीं है ।
सुनी पड़ी है बाँहे मेरी, सुखे जा रहे लब ।
कब आओगे तुम ओ साजना ? मन पुछ रहा है अब ।।
मेरे मन बगीया पुछे, मेरे जीवन की कड़ियाँ पुछे ।
सपने सजाये जो बचपन से, ख्वाब देखे जो बचपन से ।
सारे धुधंले होये जा रहे, बगीया भी मेरी सुखी जा रही है ।
पुछ रही दुनिया मेरी, कब आओगे ।
आओगे कब ओ साजना ? मन का बोझ बढ़ रहा है ।
सुकून खोया, बेताबी लगी है ।
कब आओगे तुम ओ साजना ? मन पुछ रहा है ।।
लोगों के ताने सुनता रहता, मन की प्यास से कहता रहता ।
आने वाली है वो मन की रानी, मन मल्लिका सपनों की रानी ।
कहते सुनते जीवन बीता, बीत रही ये जवानी ।
मन पुछ रहा साजना, कब आओगे ।
कब आओगे ओ साजना, मन बेचैन बड़ा है ।
आओगे कब ओ साजना ?
Kavitarani1
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