समस्याऐं मेरी | samasyayen meri
समस्याऐं मेरी
जो लग रही थी छोटी, वो अब भी डटी पड़ी है ।
बाधायें पथ की बनकर, मेरे हर पग पर पड़ी हैं ।।
दिखने में है ये छोटी, पर समस्यायें ये बड़ी है ।
मेरे रास्तों को रोक, ये विकराल रूप ले खड़ी है ।।
जो शब्दों के जाल थे, अब उनपे पहेलियाँ जुड़ी है ।
दुविधा भरे जवाब पर, अब प्रश्नों की लड़ी है ।।
पहले ही अनसुलझे ढाल थे, अब सीधी चढ़ाई खड़ी है ।
मुश्किलें पहले ही आम थी, परेशानियाँ अब हर मोड़ पर खड़ी है ।।
जो अपने अजनबी मिले, हर किसी के चितायें जड़ है ।
अब तक सामान्य सी लग रही, वो समस्यायें बडी-बड़ी हैं ।।
मंजिल को पाने के शौर में, भौर से दुपहर तक मेरी अड़ी हैं ।
पथरीली राह पर जीवन ढोर में, काँटो की सेज से बनी लड़ी है ।।
जो लग रही थी छोटी, वो राह बहुत ही कड़ी है ।
थक गया हूँ इसपे चलकर, रवि-किरण क्षितिज पर खड़ी है ।।
चेहरे पर मुस्कान बन, मन पर कुण्डलि डाल पड़ी है ।
रूकावटें दुख बनकर, मेरे हर लम्हें पर मोतियों सी जड़ी है ।।
दिखने में हो सकती छोटी, ये चतुर चालाक बड़ी है ।
मेरे जीवन सफर के हर मोड़ पर, समस्यायें विकराल रूप में पड़ी हैं ।।
Kavitarani1
103
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें