तुम्हें मेरी याद नहीं आई | Tumhe meri yad nahi aayi
तुम्हें मेरी याद नी आई
सबको मेरी याद आई, दूर खड़ी दीवार भी मुस्कुराई ।
पास पड़ी चार पाई भी समझ पाई, पर तुझे मेरी याद नी आई ।।
सुबह को सुरज मिलने आया, शाम को चाँद शर्माया ।
तारों की रोज बरातों सी आई, पर तु नी मिलने आई ।।
सर्दी लिपट कर चढ़ आई, कोहरे ने रास्ते पर पलकें बिछाई ।
सर्द हवायें गालों को चूम कपड़ो में भर आई, पर तु नी आई ।।
दिन को धूप सिर पर चढ़ आई, किरणों ने रोज राह दिखाई ।
शाम को सूर्यास्त की सुनहरी भी मिलने आई, पर तु नी आई ।।
रात को अँधेरे को मेरी याद आई, डर ने भी मेरी पकड़ी कलाई ।
नींद ने तो बाँहे मेरे लिये ही फेलाई, पर तुम्हें मेरी याद नी आई ।।
सपनों की हर परछाई पास आई, अधूरी ख्वाहिशें भी मिल आई ।
अलार्म को भी समय की समझ आई, पर तुम्हें मेरी याद नहीं आई ।।
Kavitarani1
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