छत गिरी की ईमान | Chhat giri ki Iman
छत गिरी की ईमान
दब गई सांसे, भविष्य की उम्मीदें और देश का मान ।
रह गई बाकि सुखी रातें, मां की खाली झोली और मन के अरमान ।।
गिरी छत अबोधों पर, कमजोर थे उन कंधों पर ।
जो लेने आये थे ज्ञान का भंडार, वो हार गये जीवन से आज ।।
रह गये सवाल ही सवाल, अनसुलझे थे, अनसुलझे है ये सवाल ।
प्रश्न हर साफ मन करता है, कोई इनके भी जवाब बताओ आज ।।
सुना है छत गिरी है, सुना है दीवार गिरी है ।
सुना बहुत कुछ है पर क्या सच में बस छत गिरी है?
बहुत कुछ जानते है लोग जग में वो बोल रहे भर भरकर ज्ञान ।
बोल रहे लोग ईमान गिर गया है, बोल रहे लोग ईमानदारी का मोल गिरा है ।।
भाव किया होगा किसी ने, इस भवन का भी कभी ।
और पढ़ा होगा, सुना होगा दीवारों से आती आवाज ।।
देखा होगा कभी तो किसी ने भी, इन दीवारों की सीलन और दरार ।
आज जब गीर गई छत और दीवार, बताओ ; छत गिरी है कि ईमान ?
- kavitarani1
Om shanti

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