क्या है ये | Kya hai ye



क्या है ये 


हाँ शुरूआत में सब अच्छा था ।

अजनबी से शुरू हुए और फिर तु मेरा बच्चा था ।

तब मैं थोड़ा कच्चा था-था जो भी पर सब अच्छा था ।

तु भी समझती थी बात मेरी-मेरी भी आदत ना थी, ना चेप तेरी ।

थोड़ा-थोड़ा मैंने शुरूआत की और तुने बात की ।

दात देनी पड़ेगी क्या शानदार शुरुआत थी ।।


मेरा था अकेलापन-रखता था अपनापन ।

पर तुने थे खैल-खैले मेरे जैसे रखे थे जाने कितने चैले ।

छैले से हम बन छबीले, बातें करने लगे जैसे रहते साथ-साथ खैले ।

कुछ दिन-महीने हुए और बातों के भी बखैरे हुए ।

हुई बात-बात पर मुलाकात पर कभी साथ ना मिले ।

दुर से ही आँखों के तार मिले-मिले ना हम ।

मिले ना हम-ना सच वाली मुलाकात हुई ।

कहती रही तुम लड़की हो, पर लड़की जैसी कोई बात ना हुई ।

हाँ यहाँ से सब बदला हुआ, जिद बड़ी मिलने की,

और तुम थी अड़ी-अड़ी से फिर पड़ी पर हुई ।

बातें आगे बढ़ी और-और जिद बड़ी ।

क्या है ये, कैसे समझाऊँ ।

अपनी बात को कैसे मनाऊँ ।

कैसे समझाऊँ, क्या है ये ।।


Kavitarani1 

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