मुझसे मेरी हालत बयां नहीं होती | mujhse meri halat bayan nahi hoti
मुझसे मेरी हालत बयां नहीं होती
घर-घर घुमता हूँ,
पर दहलीजें पार नहीं होती,
मुझसे मेरी हालत बयां नहीं होती ।
अक्सर सुलभ हो जाता हूँ लोगो को,
शायद यही बात हजम नहीं होती,
मुझसे मेरी हालत बयां नहीं होती ।
पंरिदो सा उड़ता हूँ,
पंखो की मुझे जरूरत नहीं होती,
हवाओं से टकराता हूँ,
मुझे दीवारों की कमी नहीं होती,
कमियाँ मुझमें समाई हुई,
जमाने की कोई कमी नहीं होती,
कमजोर मन बैठा पाता हूँ खुद को मैं,
बस यही बात हज़म नहीं होती,
समझाना चाहूँ हाल अपने,
पर मुझसे मेरी हालत बंया नहीं होती ।
मन लगाने को हर मन तक जाता हूँ,
मन लग जाता है हर घर पर,
पर मुझसे उनकी दहलीजें पार नहीं होती,
रूक जाता हूँ वहीं सब मैं,
सोंचता हूँ, समय बितता हूँ,
और यह साल बदलता नहीं,
मुझसे मेरी हालत बंया नहीं होती ।।
Kavitarani1
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