निस्स्वार्थ प्रेम | Niswarth perm
निस्स्वार्थ प्रेम
वो बचपन के दुश्मन अजीब,
रोते विरह में बिलख- बिलख ।
जो छोङ ना पाते थे दुध आधा इंच,
छोङ देते जवानी में सारी जमीन ।
वो खाते मार रोज माँ-बाप से,
मर मिटते एक दुसरे की रक्षा खातिर ।
वो जो निस्स्वार्थ प्रेम है,
वो प्रेम भाई-बहन का प्रेम है ।।
भाई पूजे जवाई, जीजाजी के पैर धुलाये,
बहिन भाभी को अपनी माँ सा सराहे ।
वो जो एक दुसरे से लङते थे रोज,
अपने पुराने दिन बुलाये ।
वो जो दुसरे से जलते थे रोज,
अपने पुराने दिन याद करे, बिलखाये ।
ये जो निस्स्वार्थ प्रेम है,
ये भाई-बहन का प्रेम है ।।
अपना सब त्याग बहिन प्रेम मांगे,
रक्षाबंधन पर बस चाहे राखी बांधे ।
दूर पङा भाई अपनी बहिन बुलाये,
राखी बंधा हाथ में, रक्षा वचन दोहराये ।
मिठाई खिलाते आपस में,
मन में प्रेम रस घुल जाये ।
ये देख रवि चमक बढ़ जाये,
ये निस्स्वार्थ प्रेम है, ये भाई बहिन का प्रेम है ।।
-कवितारानी।
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