समझ जा | Samajh jaa



समझ जा 


ना कह कुछ-कुछ ना समझ ।

अपनी बात को खुद समझ जा ।

मैं अपनी कहूँ या कहूँ किसी की ।

तेरी मेरी बनती नहीं कहीं भी ।

इसीलिए मेरी बात को समझ जा ।

तु अपनी राह ले मुझे छोड़ जा ।।


हाँ माना आसान ना होगा ।

होगा जो वो अच्छा होगा । 

कुछ दिन-दिल ना लगेगा ।

तेरा पता नहीं पर मेरा मन ना लगेगा ।

भरेगा मन तेरा-आम होगी जब परेशानियाँ ।

कुछ भी हो पर है ये मेरी हानियाँ ।

तेरा तो था मौज-ओज और बढेगा ।

ये जग है पता चला दुखी हूँ मैं तो,

फिर कुछ नया किस्सा गढ़ेगा ।।


है ये जीवन-जीवन ही है ये ।

रूके रहे तो भी आगे बढ़ेगा । 

तू साथ रही तो ठीक है ।

तू साथ नहीं तो भी चलेगा ।

तो सोंच अपनी ही तू,

तू बात ना कर बेरी कुछ ।

कुछ भी हो-हो कुछ बी बात ।

आरोप मुझ पर लगेगा ।

तुझे जाना है तो जा,

बस अपनी बात को खुद समझ जा ।

अब ना कह कुछ-कुछ ना समझा ।

अपनी बात को खुद समझ जा ।।


Kavitarani1 

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