अच्छे लोग कहाँ ? | Achchhe log kahan
अच्छे लोग कहाँ ?
कलियुग पर दोष दूं, या फिर जमाने पर आरोप लगाऊं ।
मन में दुख भरा हुआ, इस कहुँ लिखुँ या गाऊँ ।।
कहुँ किसे-सुनने वाले ऐसे अब बचे कहाँ, जो सुने भी मेरी ।
सबको अपनी पङी है, लिखुँ तो भी पङेगा यहाँ कौन मेरी ।।
गाऊँ जो अपने दुखङे, मुखङे खिले लगते सबके यहाँ ।
सोंचे जो कि दुख से आनन्दित हुए ये, तो सच ही है अच्छे लोग कहाँ, यहाँ ।।
जब जग में मनोरंजन प्यारा, बुरे लोगो का मनोबल रहेगा हारा ।
अच्छों की कदर नहीं, तो अच्छे लोगो का मनोबल रहेगा हारा ।।
आवेश की कभी लहर चलती, नेट बंद की भावनाऐं शांत रहती ।
उकसावे से संवेग चलते, फिर स्वचालित, स्वविवेकी रहते मरते ।।
मैं भी था अच्छा, मन का था सच्चा, जब था मैं बच्चा ।
अब जब बङा हुआ, बुरों से मिल रहा, समझ रहा, अच्छों के लिए जगह कहाँ ।।
अच्छे लोग बस भाषण में अब मिलते हैं ।
कोई कमेंट करे या रिप्लाई यहीं दिखते हैं ।।
ये एक आभूषण सा बन गया ।
हर बुरे तरह के लोगो को ये जम रहा ।
जम रहा की अच्छे दिखे हम ।
चाहते है कि सब अच्छा कहे हमें ।
दिखाते है कि हम है सबसे अच्छे ।।
कर्म की जब बात आये, या देश की ही जब बात हो ।
त्याग की कुछ कहनी नहीं, स्वार्थ से बढ़कर कुछ नहीं ।।
मानवता के अवगुण लेकर सारे, कहते हम है अच्छे इंसान सारे ।
इन्हे देख और परख कर मैं, कहता हूँ " अच्छे लोग कहाँ ?"
-कवितारानी।
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