बेधङक | bedhadak
बेधड़क
कोई रोके राह मेरी या आ खङा हो सामने जो,
मैं भीङ जाता हूँ उनसे ही, मैं लङ जाता हूँ उनसे भी ।
बेधड़क अपनी मंजिल का राही मैं ।
अपनी धुन में चलने वाला हूँ ।
मैं अपनी दौङ-दौङता हूँ ।
मैं अपनी राह पर चलता हूँ ।
फिर भी कोई अनायास-प्रयास कर रोके तो ।
मुझे मेरी राह पर चलने से टोके तो ।
मैं बेधड़क टकरा जाता हूँ ।
मैं जैसे चाहे वो, वैसे लङ जाता हूँ ।।
ये आज से नहीं, जमाने से होता आया है ।
लोग चाहते नहीं, आगे बढ़े कोई ।
बस करते कोरा दिखावा है ।
दुख में राही को झूठी सांत्वना बरसो से,
जो पथिक निकला उनसे आगे तो,
रूकावटे बनते वो ही है ।
मैं बेधड़क ऐसो से भीङ जाता हूँ ।
लङता हूँ अङता हूँ और आगे बढ़ जाता हूँ ।
मैं आगे बढ़ता जाता हूँ ।।
समझौते में व्यवहार मैं करता हूँ ।
लोगो से ज्यादा खुद की परवाह करता हूँ ।
अपनी ही पहले सोंचता हूँ ।
अपने मन की ही सबसे पहले करता हूँ ।
ये लोग मेरी सफलता के साथी बस ।
यहाँ हूँ काम के वास्ते बस ।
इनसे मेरा क्या लेना, क्या देना है ।
मैं बेधड़क कहने वाला हूँ ।
मैं बेधड़क रहने वाला हूँ ।।
-कवितारानी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें