चुनों अपनी राह | Chuno apni rah
चुनो अपनी राह
लोग क्या कहते हैं परवाह छोङ ।
अपनी मंजिल के लिए चुनो अपनी दौङ ।
चुनो अपनी राह की भविष्य निहार रहा ।
अपने आज में क्यों तू खुद को बांध रहा ।
नये युग का आगाज है ।
सपनों की नई उङान है ।
खुद को ना यूं तू रोक ।
अपनी मंजिल के लिए खुद को झोंक ।
वो कल तेरा रास्ता निहार रहा ।
सुबह का सुरज तुझे देख रहा ।
अंधेरे को दर किनार कर ।
बन रवि तू आगे बढ़ ।
हे राहगीर सच्चा मान कर ।
रास्ता चुनना थोङा संभाल कर ।
हर रास्ते की एक मंजिल है ।
तू रूकना ना एक बार चलने पर ।
साथी बने राहगीर तु घुलना ना ।
राह के आरामगाहों में तु रुकना ना ।
तेरी मंजिल बङी व्याकुल है तु रुकना ना ।
यही सोंच करती रहे तुझे व्याकुल तु रुकना ना ।
चुनो राह अपनी अब समय नहीं ।
मंजिल के मुसाफिर कई ।
जो तु ना बढ़ पायेगा ।
फिर कैसे युग तुझे गायेगा ।
चुनो राह अपनी ।
कि मंजिल बुला रही है ।।
- कवितारानी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें