हमारे मन में निवास करते हो | Hamare man mein nivas karte ho



हमारे मन में निवास करते हो 


घर परिवार से दूर रहते हो ।

अपनी पीङा और दर्द छुपाते हो ।

बन कर्मठ कर्तव्यनिष्ठ शिष्टता दिखाते हो ।

मधुर मुस्कान से मन पर छाते हो ।

कृतघ्नता से अपनी हमें  कृतज्ञ करते हो ।

ज्ञान सागर उङेल हम पर आह भी ना करते हो ।

ज्ञान प्रकाश फैलाकर अंधकार हरते हो ।

कोमल वाणी बोल मन हरते हो ।

हास्य कथा कह खुद ना हसते हो ।

अनुशासन का पाठ अनुशासित करते हो ।

प्रेम सौहार्द बता प्रेम सागर बनते हो ।

विशाल ह्रदय बता मन खाली रखते हो ।

दोष क्लेष दूर रख संयम सिखाते हो ।

आभा अपने व्यक्तित्व की लुटा दीपक बनते हो ।

पथिक हमारे बनके पथ भी बनाते हो ।

अपनी कमियाँ छुपा हमारी हरते हो ।

सर्वगुण सम्पन्न हमें गुणवान करते हो ।

शिक्षक, गुरु, अध्यापक रुप में आप आभार करते हो ।

जीवन सफर को स्पर्श कर यादगार बनते हो ।

आप हमारे मन में निवास करते हो ।।


-कवितारानी। 

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