झूठा साथी | Jhutha sathi

 

झूठा साथी 


साथी होता अजीब ये, दिखने में भी लगता अजीज ये ।

पर समझता अपने को नाचीज ये, खुद को मानता नामची ये ।

ये झुठा साथी, साथ ही रहता ।

ये झूठा साथी, खास ही कहता ।।

पर इसके होते तर्क अजीब, करता रहता कुतर्क अजीब ।

लगता जैसे अपने को झूठा बतला रहा हो, जैसे अपने को नीचा दिखा रहा हो ।

ये खुस होता अपनी सफलता में, पर बखान नहीं करता ।

अपनी सफलता को छोटा कर, किस्से दुनियाभर के कहता ।

लोगो से अपनी मनवाने की होङ करता ।

साथी कहता अपने को पर, अपनी बात का हमेशा खंडन करता ।

ये झूठा साथी, झूठ के बल पर जीता ।

ये झूठा साथी, अपने मन मर्जी की करता ।

इसे फर्क नहीं पङता अपन ने जो कभी अपने हक की कहा ।

रहा जाता ना इससे एक पल को कुछ कहे ।

और हर कहने में खुद की ही इसने कहा ।

ना घर पर ये हमें ले कर चलता ।

ना अपने को कभी छोटा कभी दिखने देता ।

सुनता ना अपनी एक बात को, मन से कभी ।

स्वार्थ में सबसे आगे है ये रहता ।

ये झूठा साथी, मतलबी है बहुत। 

ये झूठा साथी, अवगुणी है बहुत ।

कहीं दिखे ऐसे गुण किसी साथी में आपको भी ।

तो आगे बढ़ जाना उसे भुलाकर के ।।


-कवितारानी।

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