काश मैं फिर बालक बन जाऊँ | Kash main fir balak ban jau


 

काश मैं फिर बालक बन जाऊं 


काश! मेरी ईश्वर सुन ले ।

काश ! मेरे ईश्वर मेरी सुध ले ।

मैं अपने लक्ष्य का राहगीर अटका हूँ ।

मैं अपनी मंजिल पाने से पहले भटका हूँ ।

मैं गलती अपनी ढूँढने लगा हूँ ।

मैं देख रहा हूँ मैं सही हूँ ।

फिर जग के बोझ भारी लग रहे ।

मुझे लोग बेवजह दुश्मन दिख रहे ।

मुझे अनजान आकर मिल रहे ।

मैं अनजानों में रिश्ते खोज रहा ।

जो है नही कहीं से सगे, मैं उनमें ही हूँ उलझ रहा ।

मन का मैला उनसे पूछ रहा ।

बता मुझसे रूठने की क्या वजह ।

मैं लडूं उनसे जो बैरी है और मान जाऊँ अगले पल मैं ।

मैं नजरअंदाज लोगो को कर दूं ।

जटिल बातों को ना समझू ।

मैं भूल जाऊँ बुरा करने वाले लोगो को ।

मैं बचपन में चला जाऊँ ।

काश ! मैं फिर बालक बन जाऊँ ।

काश ! मैं फिर बालक बन जाऊँ ।।


- कवितारानी।

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