खई बाकि | Khai baki


खई बाकि


बचपण री बातां गी, बातां भूली मोटीयार री ।

पचपन री उमर होई, रातां धुली मुरझाई सी ।

खुण साथ, खुण परायो ह, सब जाण ग्यो ।

खई पास ह, खई-खई खोयो, खई बाकि जाण ग्यो ।।


जाण ग्यो खई साथ नी जाव, जाव नी काया साथ ।

भाई-बन्धु, बेटा-बेटी, न लोग-लुगाई रे व पास ।

व अंत समय बस यादां रे व, वे भी रे जाव राख ।

खई बाकि, खई सोचूं, सब मिलेगा, होवगा राख ।।


मन मारूं, ईच्छा मारूं, मारूं म्हारो इतिहास ।

जोर दिखाव बालक खदी-खदी सामं आव मोटीयार ।

समाज स लडू खदी-खदी खुद ही नी आऊं रास ।

खई बाकि रे ग्यो जद परिवार नी बैठ पास ।।


देखूं लोगां ही, देखूं परिवार वालां नी, लगार आस ।

कदी खेऊं मन की और सुनूं जसा हो फटकार ।

हार नी मानूं उमर म बङो, तजुर्बो देव सास ।

खई बाकि बच्यो जग म, जद देखु यो संसार ।।


अंत समय पास आव, लगाऊं स्वर्ग की अरदास ।

कर्म करूं, सतसंग करूं, करूं मानवता रो काम ।

नाम नी छाव, दन कट जाव, रेव थोङो आराम ।

खई बाकि हिसाब लगाऊं, बताऊं सब बस म्हारो राम ।।


खई बाकि, खई बचायो, बचायो कमायो नाम ।

साथ रेव या राख होव, मन रेव राम, मन रेव राम ।।


- कवितारानी।

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