मुझे नफरत है | mujhe nafara hai


 

मुझे नफरत है

जो अपने आप में सिमटे हैं ।

अपनी ही बस दम भरते हैं ।

दुसरों से ईर्ष्या करते हैं ।

अपनी ही बस कहते हैं ।

मैं कैसे इनसे मिलकर रहूँ ।

मैं कैसे इनसे प्रेम करूँ ।।


साफ मन और साफ इरादे पाये हैं ।

एक लक्ष्य और संघर्ष अपनाये हैं ।

मैं साफ मन लोगों से आया हूँ ।

मैं दिल में बस प्रेम बसाया हूँ ।

फिर कैसे मैं ईर्ष्यालुओं को अपनाऊँ ।

फिर कैसे मैं बैरियों से मन लगाऊँ ।

कैसे मैं अपने विरोधियों को सहुँ ।

मैं बस इनसे नफरत करूँ ।।


मुझे नफरत इंसानो से नहीं ।

मुझे नफरत मन मौजियों से नहीं ।

मुझे नफरत है पीठ पिछे बुराई करने वालो से ।

वो जो मुझसे जल जल कर मरते हैं उनसे ।

वो मुझे निचा दिखाना चाहते हैं उनसे ।

उनसे जो मेरी खुशी में दुख भरते हैं ।

मुझे नफरत है परपीङा में खुशी ढुंढने वालों से ।

मुझे नफरत है पिछे पङे हुए शैतानों से ।

मुझे नफरत है इन राह के पङे हुए पत्थरों से ।

मुझे नफरत है मेरे दुश्मनों से ।।


-कवितारानी।

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