समुह | Samuh
समुह
दल कहे या दलदल, ये समूह मुझे समझ नहीं आते ।
पाबंदियों को दोहराते, ये समूह रुकावटे हैं लाते ।
सारे समूह नहीं बुरे, ठीक ही कहा किसी ने ।
पर सारे समूह सही, ये ना कहा किसी ने ।।
वो दल जो दलित बनाकर शोषण करे ।
वो दल जो स्वाधीन को अधीन करे ।
वो दल जो बल से राज करे ।
स्वतंत्रता ना जहाँ वो दल सही कहाँ ।।
आत्म सम्मान जहाँ समान ना हो ।
जहाँ किसी एक मत का अधिकार हो ।
जहाँ किसी की बात मानी ना जाये ।
वो दल समूह कहाँ तक सही ।।
अच्छे से अच्छे दल बिखर जाते है ।
जब शिखर की बात तक कोई ले जाते हैं ।
तब बस एकान्त का राही होता है ।
मंजिल पर हर कोई अकेला खङा होता है ।।
तो मित्र चुनों, मित्र समूह नहीं ।
अपना लक्ष्य चुनों, दल को नहीं ।
अपनी राह चलो सबकी नहीं ।
सबको साथ रखो पर रहो अकेले ही ।।
-कवितारानी।
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