सोंच | Soch

 

सोंच 


कल की सोंच उलझे हो ?

क्यों ऐसे रूखे से हो ?

अपनी फिक्र करते हो ।

अच्छा है अपने दम पर जीते हो ।

सोचना अच्छा है,

अपनी फिक्र अच्छी है ।

पर जो रोक दे कदम, 

वो सोंच गहरी है ।।


गहरी सोंच भटकाती है ।

कभी-कभी ये हमें डराती है ।

और डर के कौन अच्छे से जी पाया है ।

मन का हारा-हारा ही रह गया है ।।


सोंचो तो इतना की, पंख ना रूक पाये ।

खुले आसमान में कोई ना रोक पाये ।

रुकावटों को हटाने के उपाय सोंच लो ।

करना क्या है जीवन में ये सोंच लो ।।


अपने कर्म को निखारने की सोंचो ।

अपने धर्म को अडिग करने की सोंचो ।

सोंचो की साथ क्या ही जायेगा ।

याद रखो सब यही गाया जायेगा ।।


मन को लगाम देकर रखो ।

विचारों को स्वतंत्रता से रहने दो ।

सपनों को पंख फैलाने दो ।

सोंचो और बेहतर करने की बस ।।


- कवितारानी।


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