दोस्ती के रंग /dosti ke rang



दोस्ती के रंग


 रंग वफा का दोस्त ने था कल दिखाया,

दंभ भर-भर कर गुस्सा अपना दिखाया,

जो कुछ सुना उससे सब बस उधार का था,

दोस्त समझा था जिसको वो नादान मुर्ख था।

कितने ही काम बिगाङे थे उसने,

कितनी ही गलतियाँ की थी उसने,

सब को भुला कर सही राह मैनें थी दिखाई उसे,

उसने भी बदले में जान लुटाई थी मुझपर,

पर कल कितना उसे मेरे खिलाफ भङकाया,

कितना उसे मेरे से भिङवाया,

जाने क्या वो माजरा था,

मिलने ना जाना तो बस बहाना था।

कारण वो छोटे से लगे जो बताये उसने,

दलिलें वो खोखली लगी जो बतायी उसने,

जाने कौन थे वो जो कल दोस्ती पर पहाङ लाये,

पर मुझे अपने भाई से काफी दुर छोङ आये।

आज अपनी दोस्ती की चरम सीमा को मैनें पाया,

खास समझने लगा था एक और को,

पर हकीकत को अब पाया,

वो बहुत बङी बातें करता था,

दोस्ती की कस्में भी खाने लगा था,

जाने क्या बात सोंची उसने,

नियति ने रंग दिखाया यहाँ अपने,

नतिजे हैं आये दोस्ती की परख के,

फैल हुई थी दोस्ती और मिशालें,

अब फिर ना कोशिश करुँगा खास किसी को बनाने की,

ना ही किसी को अपना मानुँगा,

ना एतबार कर सकुँगा,

अब बस अकेले रहुँगा,

इश्वर का धन्यवाद की उन्होने मित्रता की परख ली,

और धन्यवाद् उनका कि जल्दी से परिणाम दिया,

मैं अब और अपने पसंदीदा रास्ते खोजुँगा जो मुझे लक्ष्य तक पहुँचाये।

मित्रता केवल एक सहारा है,

इसमें तो कई सारे स्वार्थ है,

और व्यवसाय अच्छा है मित्रता कि अपेक्षा,

मैं एक साफ रास्ता खोजुँगा जीने के लिए अब।।


-कवितारानी।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

फिर से | Fir se

सोनिया | Soniya

तुम मिली नहीं | Tum mili nhi