जिसे हम ढुँढ रहे थे / dund rhe the jise
जिसे हम ढुँढ रहे थे
देख जिसे हमेशा साँसे बढ़ जाती थी,
मंद-मंद मुश्कान होंठो पर चढ़ जाती थी,
वो यार मेरी कब जिद् पर चढ़ गयी,
वक्त ले रहा था अंगङाई,
हर वक्त वो रहने लगी घबराई,
प्यार मेरा भी जब परवान था चढ़ने लगा,
यार मेरा मुझ पर था मरने लगा,
एक दिन जैसे रब की महरबानियाँ हुई,
घर के बाहर अचानक उससे मुलाकात हुई,
संसनाहट जैसे रगो में भर गई,
उसकी बातें मुझमें थी हिम्मत भर गई,
कह दिया दिल के हालात उसको,
कह दिया धीरे-धीरे रोज सब उसको,
जाने क्यों ना वो मुर्झाई थी,
मेरे पास और वो आयी थी,
लब्ज ना प्यार का मुँह से उसके निकला,
हर दम मैंने अपने दिल को मसला,
हर कोशिश मैंने जब आजमाई थी,
आखिर मेरे हारने कि बारी आयी थी,
छोङ दिया उसे कह दिया उसे की दुर मैं हो जाऊँगा,
तू ना छोङ हॅसना मैं दुनिया छोङ जाऊँगा,
तेरी एक मुस्कान पर ही तो मर मिटे थे,
अब उसे छिन दुनिया से हम क्यों रुठे थे,
मन किया मनुहार किया,
जत्न किया हर प्रयत्न किया,
दुनियादारी वो मुझे समझा रही थी,
नियम कोयदों को गा रही थी,
दिल में एक जगह जो मैंने बना रखी थी खो रहा था,
अब मैं उससे दुर दो रहा था,
देख जिसे हमेशा साँस बङ जाती थी,
मन्द मन्द मुस्कान होंठो पर चढ़ जाती थी,
जिसकी दुरी एक तरंग जैसे बजा देती थी,
वो अब मुझसे कहती थी,
तुम भुल जाओ मुझे मैं ना मानुँगा,
जकङे हुए इन रिवाजों को ही मैं मानुँगा,
बैर तुमसे भली बैरी ना सबकी होऊँगी,
मैं अब तुमको कभी ना मिल पाऊँगी,
भुल जाओ मुझको मैं दोस्त बनकर रहती थी,
भुल जाओ कि मैं कुछ सहती थी,
करियर अपना बनाके आगे तुम बङो,
इन सब से दुर रहो मुझसे ना लङो,
कर मनुहार कई गीत मैंने लिखे,
कर योवन के चर्चे उसके गीत मैंने लिखे,
पुछ फिर वही बात ली घूम फिरकर,
ना मानी ना मानेगी लग जब गया,
कदम खींचे पीछे और दुर अब मैं हुआ,
देख जिसके योवन को हम जिते थे,
मन्द मन्द मुस्कान अब वो ढुँढ रहे थे।।
-कवितारानी।

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