जग बिसरा हूँ / jag bisra hun
जग बिसरा हूँ
बङ गया दिन हो गयी शाम,
रात अँधेरी अँधेरा शाम,
के जग भुल गया, के रात में गुम हो गया।
गुम हो गया, गुम हो गया,
तु आजा बतला दे, जाना कहाँ रहना कहाँ।
के बिसरा हूँ रात का तारा,
आ पास मेरे दे दे सहारा,
के पार हो जाऊँ भव सागर को,
जो पाऊँ साथ तेरा,
जग बिसरा हूँ मैं रात का तारा।
ढुँढ रहा हूँ रात का सहारा,
हर गली हर मोङ पर पुछा।
कहाँ रहने लगा यार दिवाना,
रात अँधेरी चढ़ गयी, चढ़ गये तारे,
कुछ वो थे हारे कुछ हम थे हारे,
भुला बिसरा याद करुँ।
साथ जीने मरने की बात ना करुँ,
कि जग बिसरा हूँ मैं का तारा।
खोज रहा हूँ जीने का सहारा,
जग बिसरा हूँ मैं रात का तारा,
घूम रहा हूँ मैं हारा हारा...
जग बिसरा हूँ मैं रात का तारा।
-कवितारानी।

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