आज भी अकेला / aaj bhi akela
आज भी अकेला
जिन्दगी की तह में, मैं दबा जा रहा अकेला।
रोज नये दिन के साथ मैं कटा जा रहा अकेला।
उम्मीदों की चाह में, नाउम्मीद रह रहा।
हिम्मत बन खुद की आगे बढ़ रहा।
मैं कल भी अकेला था चल रहा, आज भी अकेला चल रहा।।
कोई साथी हमसफर बन ना पा रहा।
कोई राहगीर मुझे जीवन के लिए ना भा रहा।
आस थी कभी किसी मन के मीत की वो जिन्दा रखे जा रहा।
मंजिल है कौनसी अनजान बन मंजिल को जा रहा।
मैं कल भी अकेला था चल रहा, आज भी अकेला जा रहा।।
कोई ताजगी भरी भौर सुहानी होगी।
मेरी मंजिल मेरे हमसफर सी प्यारी होगी।
सपनों को देखा था बचपन में कभी उन्हे उकेरे जा रहा।
अपनी राह खुद ही मैं बनाये जा रहा।
मैं कल भी अकेला था सफर में, आज भी अकेला चला जा रहा।।
कई करवटें मौसम की देखी है।
जिन्दगी की दि हर सलवटे देखी है।
वो ख्वाब जो देखे थे कभी खुद के लिऐ मैने।
उन हसीन ख्वाबों को जिन्दा रखे जिये जा रहा।
मैं शांत अपनी धून में अपने एकान्त को गा रहा।
मैं कल भी अकेला था सफर में अपने।
मैं आज भी अकेला चले जा रहा।।
-कवितारानी।

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