अभी प्यास बाकी है | Abhi pyas baki hai



अभी प्यास बाकि है


जीवन सागर में ढूबकी लोग लगाते हैं।

जो मिले उसमें खुश रहने के गीत रोज गाते हैं।

आते है, टकराते है, और ना चाहूँ तो भी पास आकर, मुझे समझाते हैं।

समझ मेरे आता नहीं, कोई गीत मेरा गाया करता नहीं।

मैं समझा किसी को पाऊँ नहीं, लोग समझना भी चाहते नहीं।

पर मेरी जीत अभी बाकि है, मेरे लिखे गीत अभी बाकि है।

अभी पिया है कुछ रस, सफलता का जाम अभी बाकि है।

मेरी बुझी नहीं प्यास अभी, अभी प्यास बुझना बाकि है।।


जो है उसमें खुश हूँ, पर मौज मेरी बाकि है।

जो मिला वो अच्छा है, पर पद का नशा अभी बाकि है।

जो पाया वो खोना नहीं, पर जो चाहा वो मिला नहीं।

जो चाहा वो अभी बाकि है, मेरी आगे बढ़ने की आस अभी बाकि है।

कुछ तर हुए सपने मेरे, पर आस अभी बाकि है।।


हाँ दूर है मंजिल शायद, तब ही तो दिख नही रही।

धूंध तो हट गई है, पर मंजिल अभी दिख नहीं रही।

रास्तों के भूल भूलैया पार किये, अब कुछ ही राहें दिख रही।

लिखि तकदीर किसपर, चलेंगे तो मंजिल मिलेगी ही।

थका नहीं बस आराम किया, अब ही तो अंतिम दौङ बाकि है।

सफलता को चखा है बस, पर रसपान अभी बाकि है।

प्यास भी बहुत है मेरी, इसलिए लग रहा है,

प्यास मेरी बाकि है।।


-कवितारानी।


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