एक मुस्कान और राज कई | Ek muskan aor raj kai



 एक मुस्कान और राज कई 


मासुम सी शक्ल पर अक्ल नहीं ।

मासुख सी अदा पर कोई फिदा नहीं ।

सीधी सी होती बात और दात कई ।

एक मुस्कान प्यारी और राज कई। ।


दर्द गहरे है ठहरे कई-कोई अर्ज नहीं।

मर्ज सहरे है पहरे कई-कोई दर्ज नहीं।

रोज होती नई मुलाकात और कोई याद नहीं।

फिर एक मुस्कान और रहते राज कई। ।


तारीफों के पुल बंधते, लब्ज ठहरते नहीं।

काफिलों के आगे चलते, दाखिले खुद के नहीं।

कसमकस और आजमाईशें ख्वाब के लिए कई। 

सुरत पर एक मुस्कान और राज कई। ।


संगेमरमर से ताज बखुब पर महल नहीं।

समंदर मे राज है खुब पर महल नहीं।

चाँदनी है बखुब और चाँद पर दाग कई।

सिरत है एक मुस्कान और राज कई। ।


पहल सी जिन्दगी पर परीणाम नहीं।

महक सी बंदगी पर परीमाप नहीं।

बढ़ती रहती बातें और रहता सार कहीं।

फिर भी एक मुस्कान और उसपे राज कई। ।


तलाश बस एक और पास कई। 

मंजिल एक चाह और मुकाम कई। 

संतोष एक आस और कोई आस नहीं।

रहे एक मुस्कान और रहे भले राज कई। ।


आजकल चलती रहती जिन्दगी बस यूँ ही।

चेहरे पर एक मुस्कान और दिल में राज कई। ।


-कवितारानी।



Kavitarani1 

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