हालात ए जमाना | Halat e jamana
हालात ए जमाना
किसे पङी है दूसरों की, सबको अपना हाल सुनाना है।
वक्त साथ बिताये कितना ही, दुरियाँ सब मिटा देती है।।
ये कायरों का संसार है रवि, कोई तुझे सह नहीं सकता यहाँ।
इनकी हाँ में हाँ तक बात करेंगे, ना कौन सुनता यहाँ।।
भोलेपन में सिख सब देते हैं, पर स्वार्थ खुद का रखते हैं।
डरते बहादुरों से और उनकी गलत बात भी मानते हैं।।
वाह जमाने क्या फितरत बनाई, सीधो को सीधा रहने ना देता।
उल्टों की करता वाह वाही, वाह क्या बात जमाई।।
अब मन नहीं होता किसी से कहने का, दुखो का पहाङ मजबुत हो गया।
आसानी से ढहता नहीं ये, झरनों का बहना भी रुक गया।।
कब तक सुने बस मन बहलाने की, सारे अपने मन की कहते।
अपने मन की करने में, दुसरे की एक ना सुनते।।
कैसे बिगङे बोल है लोगो के, मुह से साथी कहते रहते हैं।
काम आये दुख में कभी ऐसा अहसास ना होने देते हैं।।
अपनी गाथा गाते लोग, लोगो की सुनता मैं।
कब तक अपने मन का बोझ सहूँ सोचता रहता मैं।।
हालात ए जमाना पहले रास आया ना अब आता है।
अपनी धुन का बनकर मैं जीवन जीता जाता हूँ।।
-कवितारानी।

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