लोग हैं कुछ तो कहेंगे / Log hai kuchh to kahege
कुछ तो लोग कहेंगे
ऐसे कोई कहता नहीं, पर किसी के मन में रहता नहीं।
सामने नहीं तो पिछे से कहेंगे, लोग है कुछ तो कहेंगे।।
हाँ ये लोग है कुछ तो कहेंगे, अपने मन की ही कहेंगे।
इनका काम है कहना, और चुप ना रहना।।
बात का पंतगढ़ ये बनाते, अपनी ही ये कहते जाते।
रहते हमेशा छुपते छुपाते, कोई पूछे आगे होके तो कुछ नहीं बताते।।
अपना नाम छुपाकर जैसे मन का बोझ उतारते हैं।
बिन पूछे ही अपने मन की अलापते हैं।।
दुसरों की कहने में इन्हें बङा मजा आता है।
हॅसकर मजा लेने में किसी का क्या जाता है।।
काम के ना धाम के मरे पङे है जान के।
इनको अनदेखा कर चलते हैं, समझदार इनपे नहीं पलते हैं।।
जलने वाले और कहते हैं, समझदार यहाँ चुप रहते हैं।
ये जानते है, लोग है, कुछ तो कहेंगे।।
लोग है कुछ तो कहेंगे, लोगो का काम है कहना।
लोगो का काम है कहना और चुप ना रहना।।
विचारों के मरे ये बदल जाते हैं, ऋतु की तरह ये पलट जाते हैं।
कल का कहा इन्हें याद ना रहता, कोई कुछ कहे, इन्हे पता ना रहता।।
जिन्दा है तो जिन्दगी ये जीते हैं, किङे की तहर ही ये जीते हैं।
दुसरों की कहना इन्हें भाता है, अच्छा लगे या ना पर कहते हैं।।
लोग है कुछ तो कहेंगे, लोगो का काम है कहना।।
-कवितारानी।

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