मैं भूला तो नहीं | Main bhula to nahi
मैं भुला तो नहीं
माना की दूर रहते हो, मुझसे ना कहते हो।
जिक्र ना मेरा सुनते हो, अपनी ही सदा कहते हो।
पर कहीं तो कभी तो याद दिलाता होगा, कोई तो मुझसा मिल जाता होगा।
कोई शब्द ही मुझे याद दिलाते होंगे, या मेरे किस्से कहीं टकराये होगे।
मुझसे पूछो क्या है मुझमें, मैं भूला तो नहीं पर याद नहीं करता तुझे।।
जैसे गिरती बारिस और खो जाती है, गर्मियाँ आने पर नमी खो जाती है।
जैसे होतो पूनम और चाँद खो जाता है, मावस आती अँधेरा हो जाता है।
जैसे कोई फूल महकता और मूर्झाता है, अतीत में कहीं खो जाता है।
वैसे मेरे गुजरे जमाने सी तुम, कहीं मुझमें ही खो गई हो।
मैं भूला तो नहीं तुम्हें, पर तुम याद भी नहीं आती हो।।
हाँ मौसम बदलते हैं और फिर से दोहराते है।
चाँदनी रात भी हर मावस के बाद आ जाती है।
नया फूल खिलता नई टहनियों पर और महकता है।
पर तुम ना आओ तो अच्छा है, दूर रहो तो ही अच्छा है।
क्योंकि मैं भूला तो नहीं, पर याद भी नहीं करना चाहता तुम्हें।।
अब ये जीवन यूँ ही कटना है, मेरा प्यार मुझमें रहना है।
जो जीना था मधूर रस साथ तुम्हारे, अब वो किसी और के हिस्से करना है।
रुकी नहीं तुम जो मेरे लिए, मुझे भी नहीं रुकना खुद के लिए।
ये जीवन समय सा ही तो है, ना तुम रूकी, ना जीवन, ना समय।
मैं भूला तो नहीं कुछ भी, पर याद भी नहीं करता तुम्हें।।
-कवितारानी।

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