पार्थ / Parth



पार्थ


तुम कर्म करो पार्थ, कर्म करो।

वो स्वर्ग तुम्हारा है।

वो बहती नदिया, वो झरने, वो झील, वो दृश्य। 

वो मिष्ठान, खाद्यान्न तुम्हारा है।

क्या सोंच रहे पार्थ, कर्म करो, कर्म करो।

वो आकाश तुम्हारा है।

अपनी लगन लगाओ, अपनी जिद करो।

अपने मन की करो, वो सपनों का जहान तुम्हारा है।

आगे बङो पार्थ, आगे बङो।

जैसे किरणें बढ़ती है रोशन जहान करने को।

जैसे निशाचर चलता अपनी धुन में।

जैसे रवि खुद जलता जग हरने को।

वैसे ही तुम भी, निस्स्वार्थ, निस्संकोच, निर्भय बङो।

आगे बढ़ो पार्थ, आगे बढ़ो।

जग किर्ती तुम्हारी बाट जोह रही।

तुम्हारे अनुयायी तुम्हें देख रहे।

रहो ना हताश परेशान पार्थ।

कर्म करो, आगे बढ़ो, खुद से लङो।

रुकावटों से ना डरो पार्थ। 

उलझनों से मत डरो।

कहने दो जग को, यश तुम्हारा है।

छोङो उसे जो बिल्कुल नकारा है।

हार से ना डरो,

भीङ से ना डरो।

आगे बढ़ो पार्थ, आगे बढ़ो पार्थ। 

आगे बढ़ो।।


-कवितारानी।




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