सुन मेरी / sun meri
सुन मेरी
सुनो नहीं ! सुन।
अपनी ना तु बुन।
ये अपने आपस की बात है।
अपनी हुई नहीं मुलाकात है।
पर फिर भी अपना साथ है।
अपन एक दुसरे के खास है।।
अब लोग कहेंगे तो कहने दे।
उनकी बातें तू रहने दे।
अपनी ही सुना अच्छा लगता है।
हॅसी से तू बच्चा लगता है।
बच्चों में तू बङा खुलता है।
अपने को भी ये चलता है।।
कहना था कुछ-कुछ कह गया।
मुद्दे की बात से हट गया।
रट गया था मैं जिसे कल रात से।
सुबह होते होते जैसे भटक गया।
वैसे भटका नहीं मैं, मैं अटक गया।।
अब तेरा जो स्वेग है।
और छोटा मेरा बेग है।
इतनी किताबें रखता ना मैं साथ में।
और अब तू पहेली मेरे हाथ में।
साथ में बातें किसी से पहली दफा।
सोंचता हूँ कहीं हो ना जाओ खफा।
यही सोंच रुक जाता हूँ।।
हाँ मैं सोंचता हूँ कहीं कोई गलती ना हो।
और मेरी गलती पर तू पल्टी ना हो।
और फिर मैं रह जाऊँ ना अकेला।
जैसे पहले था वैसे ही हटेला।।
फिर तू तो जानती है अपनी आदत है खराब।
जो ना आये समझ उसे बोल देते रास्ता नाप।
या फिर उसकी कर देते टांग खिंचाई।
पर वैसे कोई तुझसी कभी ना थी आई। ।
देख अपना एक अलग नाता है।
जो तुझे ना आये समझ मुझे भी ना भाता है।
बच्चों सा रहना तुझे भी भाता है।
और बच्चों में रहना मुझे भी आता है।।
चल सब छोङ जाने दे।
विडिओ काॅल कर और मुझे तुझे चाहने दे।
देख दूर से ही खुश रह लुंगा।
पर भाव ना खाना यही कहना है।
साथ अभी, हमें साथ रहना है।।
खुलकर कहना और साथ रहना।
कोई फर्क नही पङता क्या तुने पहना,क्या मैंने पहना।
बस कुछ साथ यही होना है।
फिर कुछ नया होगा और होना ही है।
तो क्या ज्यादा सोचना है।।
-कवितारानी।

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें