तू ऐसे ना रहा कर / Tu ese na rha kar
तू ऐसे ना रहा कर
तू बेवजह यूँ रूठा ना कर, वजह देकर गुस्सा ना कर।
मनाने की कोशिशें में कर लूँ, पर तू अपनी जिद पर ऐंठा ना कर।
तू समझ में किस दौर में जिया, तू देख दौर क्या चल रहा।
मेरी आजमाइशें इसी फिक्र में हैं, मेरी बंदिशे मेरे जिक्र में है।।
मैं कल को तेरे साथ ना रह पाया, सोंच तुझे कुछ बता ना पाया।
उस कल को सोंच मान जा, गलतियाँ हो किसी की आ साथ आ।।
यूँ अपनी जीत पर जश्न की ना सोंच, गुजरते हुए लम्हों की सोंच।
पल-पल मिट रही जिन्दगी आस पास, मैं हूँ अगर आस तो मेरी सोंच।
ये वक्त बुरा है कहीं मैं रहूँ या तुम, कई चले गये कहीं मैं जाऊँ या तुम।
गुजरा वो जमाना जो बुरा था, गुजर ये भी जायेगा, तू गुजरे वक्त की सोंच।।
मैं भूल जाऊँगा सब कही बातें, तू भी कुछ तो भूल।
साथ क्या जायेगा जमाने से, क्या रह जायेगा इतना सोंच।।
तू यूँ हर बात पर चिङा ना कर मेरी खतायें है क्या कहा कर।
कुछ बोल सकूं मैं इतना सुन ले, प्यार के लम्हे साथ बुन ले।
वो दोस्त अच्छे हैं रह ले साथ तू, पर उनमें ना रख कोई खास तू।
कोई मुसझे खास हो जाये तो बता दे, पर ऐसे ना उसे-मुझे दोखा दे।।
मैं सह लूँगा बस स्पष्ट कहा कर, अपनी जीवनी खुद कहा कर।
सुन दुसरों से क्या मनाऊँ मैं, तुझे तेरे यारों से क्यों बिझङाऊँ मैं।।
-कवितारानी।

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें