तुझे सोंच कर / tujhe sonch kar

 


तुझे सोंच कर


 मैं कवि तो नहीं पर कवितायें कर लेता हूँ ।

तुझे सोंच कर शब्दों को गढ़ लेता हूँ ।।

लिख लेता हूँ अपने अनकहे लब्जों को ।

जी लेता हूँ तुझ संग कुछ लम्हों को ।।


वो कल्पनाओं का संसार मुझे बहुत भाता है ।

जब तु मेरी बाहों में नजर आता है ।।

शामें रंगीन और मदहोश भरी लगती है ।

भरी सर्दी भी बसंत सी खिलती है ।।


तेरी खिलखिलाती हॅसी और चेहरा मुझे भाता है ।

तेरे साथ हर लम्हा सोंच कर मन खुश हो जाता है ।।

याद कर तुझे कमी का अहसास होता है ।

कुछ देर बात करने से ही सुकून मन को होता है ।।


दुरियाँ भले जिस्म की अपने दरमियान रहे ।

दिल की नजदीकियाँ दर्द दूर कर प्यार बयान करे ।।

मेरी गुजरती हूई जिन्दगी के कई पन्ने तेरे नाम हुए ।

अनकहे शब्दों से कविताऐं लिखते रहे ।।


तुम्हारी लिखी कविताओं में खुद को पाकर ।

निर्धन से धनी महसुस किया है ।।

गहरे चिंतन के चेतनापुंज में खुद को पाया है ।

अपने भाग्य और भविष्य में रवि खोया है ।।


एक कमी जो खटकती रहती थी मुझमें ।

अहसास अधुरेपन के पुरे होने का हुआ है ।।

आज पढ़कर कुछ शब्दों को, मुझे;

अपने अस्तित्व का आभास हुआ है ।।


मैं रवि तो नहीं जो उदय हुआ था कभी ।

तुझे सोंच कर तो यही अहसास होता है ।।


-कवितारानी।


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