सुनी ; भाग-1 लेखक की प्रेरणा अभिव्यक्ति / suni - Introduction; part-1
सुनी ः भाग-1 लेखक की प्रेरणा अभिव्यक्ति
(एक अनसुने संघर्ष की कहानी)
यह कहानी बाल विवाह कुरुति पर आधारित है, ईसमें एक बालिका के जीवन चरित्र को प्रदर्शित किया गया है जो अपने समाज, परिवार, रितियों की परवाह किये बिना बढ़ती है।
क्र. सं. विषय
1. लेखक की अभिव्यक्ति
2. मुलाकात
3. बाल जीवन
4. विध्यालय में
5. बाल विवाह
6. सामाजिक जीवन
7. महाविध्यालय
8. शिक्षक - प्रशिक्षण
9. स्नोत्तकोत्तर
10. परिवारिक दबाव
11. धर्म अर्थ संकंट
12. संघर्ष
13. प्रेम बंधंन
14. विरह
15. व्याख्याता
16. दोस्ताना
17. प्रत्यक्ष
18. उपसंहार
भाग - 1 लेखक की प्रेरणा अभिव्यक्ति
हम वर्तमान में इक्कीसवीं सदी के भारत में अपने-अपने अक्षांशों-देशांतरों में बैठे जहाँ आधुनिक मानवीय जीवन का आनन्द ले रहें हैं और कहीं अतिसंवेदनशील, कहीं अतिसामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक व्यक्तित्व बन अपनी अभिव्यक्ति को बांट रहे हैं। वहीं आज भी संकीर्ण सामाजिक सोंच पर खुलकर आवाज उठाने का साहस किसी का नहीं हो पा रहा।
यह कहानी सामाजिक अंधकार को प्रकाशित करने के लिए लिखी गई है। इसमें एक वास्तविकता का अंश लिये आधुनिकता में आनन्द की कोशिशों के बीच भी जो सुनापन जीवन म्ं रहता है, उसे स्पष्टतः बताया गया है। किस तरह से हॅसते खैलते बचपन पर समाज की बुरी नजर लगती है और संघर्षों से भरा जीवन संघर्ष की पराकाष्टा तक पहुँचता है। एक भारतीय समाज में बाल विवाह किस स्तर तक मुस्कान को छिन कर भाव रहित कोरी हॅसी छोङ जाता है और मानसिक स्तर पर दबाव सहते-सहते जीवन की कहानी सुनी रह जाती है।
श्रेष्ट जन अपने संघर्षों से हारते नहीं, वो प्रबलता से लक्ष्य केन्द्रित होकर आगे बढ़कर कई जनों का पथ प्रदर्शन बनते हैं। उन्हीं श्रेष्ट जनों की कहानियाँ समाज में बदलाव की बयार लाती है और सोचने को मजबुर करती है कि क्या हम अभी भी अँधविश्वास और गलत नीतियों में बंधे हुए हैं। हमें अभी भी ग्रामीण व नगरीय क्षैत्रों में लोगों की मानसिकता बदलनें की आवश्यकता है।
प्रस्तुत कहानी में मेरी प्रेरणा अभिव्यक्ति समाज की एक महान् अनुभूति है, जिसनें संघर्ष सहते समाज का विरोध जारी रखा, जहाँ तक आत्मकेन्द्रित, स्वविवेकि, मजबुत, आत्मनिर्भर होकर समाज को अपने ओहते से निचे ना रख दिया।
नायिका दुर ग्रामीण परिवेश की चरवाहा वर्ग की कन्या है, धुल मिट्टी का बचपन रहा, भीङ भरा कुटुम्ब रहा। सक्षम संरक्षक के घर जन्म लेने के बाद भी आधुनिक समाज की छाया उस पर ना पङ पाई और अपने योवन तक शारीरिक, मानसिक ठेठ ग्रामीण युवती रही। घोर विपदा शुरु हुई जब बाल विवाह की परंपरा ने उसे भी डंस लिया। पर व्यक्तित्व की जिद्दी और शिक्षा का असर हूआ और अपनी आजाद, प्रतिशोद युक्त प्रवृति ने उसे इस अन्याय का पक्ष लेने नहीं दिया।
जो सच्चे मन से ईश्वर की दी हूई काया का कर्म क्षैत्र मे लक्ष्य केन्द्रित अटल प्रयास करे, उसे उसके सार्थक परिणाम मिलते हैं और वो अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है।
प्रस्तुत कहानी को सर्वश्रेष्ट, रुचिकर बनाने का प्रयास किया गया पर है, पर ये संवेगात्मक व्यक्तिगत भेंट की प्रति के रुप में लिखी गई है। यह एक जीवनी के रुप में प्रस्तुत है और अंशो में बांटने का कारण जीवन के हर पक्ष का स्पष्टतः वर्णन करना रहा है। जहाँ तक प्रेरणा स्त्रोत की बात है तो यह कर्ण से स्मृति तक विध्यमान थी उसे शब्दतः किया गया है। कुछ अनुभूति की प्रस्तुतियों को कल्पनाओं से अवतरित किया गया है। यह मेरे जीवन की प्रथम जीवनी लिखने का अनुभव है, यह सामाजिक अचेतना का दृष्टान्त है।
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