अबके मुझे नजर ना आना / abke mujhe najar na aana
अबके मुझे नजर ना आना
कल शाम की बात है।
घोर भीङ मे था उजाला।
देख ना पाया एक पल को।
चुभता रहा घोर सारा।
मेरी ना किरण आयी।
बनने ना दी मैंने परछाई।
दूर तक मन घबराया।
संक्रमण से बच ना पाया।
काली अँधियारी रात थी।
बैठ अकेला बहुत पछताया।
क्यों गया उस भीङ भरी में।
मिल ही जब उससे वैसा ना पाया।
रुकना था कुछ ओर देर ही।
लङ जाता उस रोशनी से ही।
चुर-चुर तु अब होता है।
टुटता है और बिखरता है।
क्यों उसको तुने ना समझाया।
मिट्टी है घोर काली तु।
गंदगी में सङी सी है नाली तू।
तेरी दुर्गंद ने दम घोट दिया है।
ऊपर तुने लेप किया है।
जग को दुषित कर रही है।
कल शाम से व्यथित कर गई है।
अबके मेरे आस पास ना आना।
अबके मुझे कुछ ना समझाना।
-कवितारानी।
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