एकान्त में / akant mein
एकान्त में
कोई कहे कुछ ना, सुनता ना मन का।
मैल हुआ ना फिर भी शांत ये, बैठा हूँ आज भी एकान्त में।
शौर सब और है, बैठा एक ठोर मैं।
आती ना आवाजें, सुनने को बातें।
कलरल फिर भी जैसे कोई बाढ़ है।
अजरज में हूँ एकान्त मेैं।।
गली-गली भटका, भीङ में भी अटका।
मिला कोई कान्त वे, रहा फिर भी एकान्त मैं।
जाती नहीं यादें, मिटती नहीं बातें।
बदलता नहीं मन का मान रे।
सुनता नहीं किसी की कान्त ये।
हुँ आज भी एकान्त में।।
बदली आती जाती, शौर गर्जन गाती।
मानसुन की होती रहती फुहार ये।
बुझती नहीं नयनों की प्यास रे।
रहता फिर मैं एकान्त में।।
चुभन दम भरती आहें आग करती।
भरती है आहें आवाज ये।
करती रहती अशाँत तन ये।
हुँ आज भी एकान्त में।।
सुनता ना मनकी, में गलता रहता बन मिट्टी।
होती ना शाँत, हुई जो भ्रांत है।
आज भी हूँ, मैं एकान्त में।
आज भी हूँ एकान्त में।।
-कवितारानी।
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