एकान्त वर दो / Akant var do
एकान्त वर दो
वो जो पाप जग में भरते हैं।
जीने नहीं देते, ना मरनें देते हैं।
करते हैं जान बुझ कर शेतानियाँ।
ऐ मेरे रब सिखा दे उन्हें कारस्तानियाँ।।
खुद की किमत कोढ़ी की नहीं है।
जग को जो बेमोल दिखाते है।
मन से मैले पापी जन ये।
खुद जीने ना जीने देते हैं।।
अस्त्र उठाके अपना काम कर दो।
लीला इनकी तुम हर ही लो।
अधिकार नहीं जीना का इनको।
अनाधिकार कर प्राण हर लो।।
मैं एक राही सपनों का पहरेदार था।
चल रहा अनजान लालायित था।
सच्चा मन का साथ चाहा।
लुट गया अंतिम क्षण तक गिङगिङाया।।
उसको भी गिङगिङाने दो।
बदला मांगू तो सजा दो।
न्याय संगत बात है आई।
मुझे अपने पर तरस है आई।।
मन की मेरे थोङी सुन लो।
सुकून मिले आत्मा को कुछ कह दो।
मन का मेरे बोझ बढ़ रहा।
सोंच सकुं कुछ ऐसे कर दो, वर दो, वर दो।।
-कवितारानी।
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