अश्रुओं की धार / ashru ki dhar
अश्रुओं की धार
दो धार छलकते पैमानें से,
अटके हुए मेरे मयखाने से।
आ जाती थी रुक-रुक के फुहार,
मेरे नयनों की अश्रुओं की धार।।
पथ उनके टेङे मेङे थे।
वक्त से रहते बङे बेङे थे।
बेवक्त कर जाती थी प्रहार।
मेरे नयनों की अश्रुओं की धार।।
मैल मन का गहरे तल से।
अधुरे रहे अरमानों के छल से।
छुट चुकी है मन की जो बहार।
ले आती है अश्रुओं की धार।।
गंगा जमुना सी पवित्रता से,
मन की शांत सुनेपन से।
करती रहती आवाज हर बार।
जब आती है अश्रुओं की धार।।
पैमाने ये खाली ना होते।
बिन मतलब कल को रोते।
बने रहते निरंतर निर्झर अपार।
मैंरे नयनों के अश्रुओं की धार।।
आ जाते हैं बह जाते हैं रह जाते हैं।
पलकों पर सिंचते गालों को मन पर करके वार।
भर देते मेरे मन के हर द्वार।
मेरे अश्रुओं की धार, मेरे अश्रुओं की धार।।
-कवितारानी।
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