भारी मन / bhari man
भारी मन
बोझ कई लिये, मन पर बोझ कई लिये।
रवि अपनी धुन का चलने वाला, पर अभी है मन पर बोझ कई लिये।
खुद को संभाल रहा है अभी, समाज को खो रहा है अभी।
परिवार की अपेक्षाओं में उलझा, धर्म की नांव पर तरता।
अभी लिये है सपने कई, विचारों को लिये है कई।
मन पर है रवि के बोझ कई, मन पर है बोझ कई।
मन के दुश्मन मेरे हैं बढ़ गये, कई बेवजह ही बैरी बन गये।
अपना माना था जिन्हें भी, वो परायों से ज्यादा दुखी कर गये।
कभी रोग में उलझा खुद ही, कभी दोष में उलझा खुद ही।
कभी दुनिया की है सोंच मन में ही, अभी मन में बोझ ही।।
ये बोझ मन के भारी ।
मन के भार में जी रहे हैं जी।
भारी मन कह रहे यही।
मन पर है बोझ कई, मन पर है बोझ कई।
किसको अपना कहे, कहे पराया किसे।
किसको सपना बताये, छुपाये किससे ही।
है उलझन ही, है उलझन ही।
और उलझनों का भी है बोझ कई।
मन पर है बोझ कई।।
-कवितारानी।
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