लोग मतलबी सारे / log matalabi sare
लोग मतलबी सारे
स्वार्थ सिध्ध साथी सारे, मत के मद में अपनी गाते।
अपनी ही आलाप सुनाना चाहते, कहते साफ अपने को,
पर मैं कहता मतलबी है सारे।।
लोग मतलबी है सारे, साथ चाहते मतलब तक का।
अपना बतलाते अपने स्वार्थ तक, स्वार्थ पुरा होने पर पुछते नहीं।
अपने स्तर की ही कहते यही, वो अपने स्तर का है ही नहीं।।
जब काम अपना बढ़ जाता है, मन में भाव अपनों का आता है।
वो अपना-अपना रंग बताता है, बहाने सुना दीन हीन कहलाते हैं।
जीवन में पङे एक काम ना आते हैं।।
अपने काम की जब बारी आती, सारे रिश्ते याद दिलाते हैं।
लोग सारे उपकार गिनाते हैं, कैसे अपने जीवन को गाते हैं।
लोग बस मतलब से पास आते हैं।।
मतलबी दुनिया मे बाशिंदे यो मतलब तक ही साथ रहते।
मतलब तक ही बात कहते, मतलब तक ही काम करते,
ये लोग मतलबी सारे।।
अपनी कमियाँ उजागर ना करते, अपनी बातें दबाये रखते हैं।
हमारी सारी बातें फैलाते, हमारी दुनिया में गिराते हैं,
ये मतलबी लोग सारे।।
दुर इनसे रहना है, अपना काम करना है,
अपने हिसाब से रहना है, इनसे मतलब ना रखना है,
इन मतलबियों से दुर रहना है।।
मतलबी बुरा जल्दी मानते हैं, इनकी सुनों ना तो दहाङते हैं।
दादागीरी से बाज ना आते हैं, झुंड में ही हमेशा देखे जाते हैं।
हमेशा दुसरों की खिल्ली उङाते हैं।।
चमचे इन्हें भाते हैं, अपना व्यवहार बुराई करके कमाते हैं।
चुगली इन्हें बङी आती है, हमेशा दुसरों में इन्हें कमी नजर आती है।
ये मतलबी लोगों की आदत है।।
मैं इनमें नही रह पाता हुँ, दम घुटता है और घुटन से मरता हुँ।
मैं अकेला खुद को पाता हुँ, पर कभी मतलबी ना बना पाता हुँ।
मैं मतलबी लोगों से दुर रहता हुँ।।
-कवितारानी।
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