माटी रो लगाव
माटी रो लगाव
मोहे माटी रो चाव, लगाव लागे छोको है।
मोहे माटी रो प्रेम , खिंचाव मन लागे है।
खिचों जाऊं अपने आप, मनैं कछु ना भाये रे।
मोहे माटी रो राग, राग ना कोई भावे रे।
मोहे माटी रो लगाव।।
तनङो भटक्यो राह, भाव ना खीको चावे है।
मनङो बैरी लाग देख, मनकां प अटक्यो चावे है।
मनकां म बैरी भरया, बैर रोज दिखावे रे।
करणों चाउ माटी को काम, काम खुद को करावे रे।
मने माटी रो लगाव।।
पग-पग बेङियाँ बांधे, जग जगह-जगह भटकावे है।
डग मग - डग मग जीवन, जीवन रह पल डगमगावे है।
मुं लूटणों चाहूँ देश ण, जग अपणों स्वार्थ निकलावे है।
रह दन मन प बोझ, देश का काम रुकता जावे है।
मोहे माटी रो लगाव।।
बण सेठ साहूकार भारी, जेब जयचंद भरे रे।
अधिकारी रूतबो पाक कोई, मोटो धन कमावे रे।
माटी रो मोल भूल बस खुद को नाम बणावे रे।
मूं मन को मारयो बैठ अकेलो, आदेशां नो ताल गाये रे।
मन प बोझ भारी राख्यो, देश न खई दयो रे।
म्हारो माटी को प्रेम रोज मने उकसावे रे।
मोहे माटी रो लगाव।।
- कविता रानी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें