रुके बैठे हैं।




रुके बैठे हैं।

ख्वाहिशों के पुलिंदों में उलझे बैठे हैं।
हम आज मुश्किलों में उलझे बैठे हैं।
जीना चाहिए जहाँ आज को हमें।
हम कल की फिक्र कर बैठे हैं।।

कभी खुद को समझाते हैं।
कभी जमानें को समझाते हैं।
ये लफ्ज नहीं किस्मत के लेख है।
आसानी से समझ कहाँ आते हैं।।

एक हम हैं जो हम ही से लङते हैं।
जमाना चाहता पिछे रखना और हम बढ़ते हैं।
जाहिर है खुशियाँ सांझा करना सब से।
पर लोगो की बूरी नजर से डरते हैं।।

आसान है सांसे गिनना, हम गिनते हैं।
मुश्किल है खुश रहना, हम कोशिश करते हैं।
ये दरिया है जो बह रहा बिना रुके।
कई छोटे नालों को इसमें समेटे बैठे हैं।।

आज फिर खुद से बात कर बैठे हैं।
तन्हाई है इसलिए कुछ लिख बैठे हैं।
कई सपनें हैं संजोने को जीवन में अभी।
हम सही वक्त की दरखास्त लिए बैठे हैं।।

- कविता रानी।


 

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