मैं दोहराता रहूँगा




 मैं दोहराता रहूँगा 


जब तक हूँ मैं दोहराता रहूँगा।

अपनी जिंदगी के हर लम्हे बताता रहूँगा। 

वो दर्द ही था तो क्या  हुआ। 

वहाँ आनन्द  भी था तो क्या। 

वहाँ जीवन संघर्ष कर रहा था।

हाँ कभी मैं घुट -घुट जीता -जी मर रहा था।

वो गये दिन-रात मेरे।

वो बित गये अँधेरे भरे सवेरे मेरे। 

पर मैं उन्हें भूलाना नहीं चाहूँगा।

आखिर कैसे भी हो मेरी कहानी के हिस्से हैं। 

मेरे जीवन सफर में बनें वो किस्से है।

मैं अनमोल शब्दों से सजाता रहूँगा।

मैं जहाँ रहूँ,मैं जैसे रहूँ,

उन्हें दोहराता रहूँगा। ।


-कविता रानी। 

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