काश तुम समझ पाते
काश तुम समझ पाते।
माना की तुमनें कहा था।
पर फिर भी प्यार है माना था।
विश्वास जगाया था।
हर बात को आगे होके बताया था।
अब जब मन तुम पर आ गया।
सब को मन बिसरा गया।
तब तुम कहती हो हम दोस्त हैं।
प्यार नहीं बस आकर्षण था।
जो कहा अब ना कहना।
और विश्वास है पर ये ना कहना।
ये ना बताना, वो ना कहना।
यही जब ओरों को बताती हो।
और मुझसे छुपाती हो।
कितना दुख देता है।
विश्वास कहीं टुटता है।
दम कहीं घुटता है।
कैसे समझाऊँ क्या-क्या होता है।
काश तुम समझ पाते।
कैसे विश्वास बनता है।
और विश्वास बिगङता है।
क्या मन पर आती है।
और कैसे जान जाती है।
काश तुम समझ पाते।।
- कवितारानी।
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