बह गया सब / bah gya sab



हमें हमेशा ये मान कर चलना चाहिए कि प्रकृति से बढ़कर और कोई प्रेरणा स्त्रोत नहीं है। ये हमें हमेशा प्राणवान बनने के लिए सिखाती है तो हमें अपनी हदों में  रहने की भी सिख देती है।

बह गया सब


कब से पड़ा अङ रहा,

अपने वजूद के लिए था लङ रहा।

वो बेकार था जग के लिये अब,

एक समय था काम में लेते थे सब।

वह उपयोगी था,आनौखा था,जब था काम का,

बस अब रह गया बिना नाम का।

आयी बर्खा वो फिर बेबस,

बह गया जो बना हुआ वो सब।

था अकेला, दबा हुआ सा मैं भी,

विचारों के वो भाव अब थे ओझल ही, 

आयी धार तेज और बह गया सब, रहा बस जल।

निर्जल- निर्जन हैं सब ही यों

निर्जन सब जो जल ना हो।

नयी उमंग हैं, नया जन्म और नया भाव,

बह गया सब,जो बिजली चमकी, बहा जल बन धार।

रह गया सब, जो नव अंकुरित करेगा, 

बह गया सब, वो अश्रुपुरित करेगा।।


- कविता रानी। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वो मेरी परवाह करती है | vo meri parvah karti hai

सोनिया | Soniya

फिर से | Fir se