यूँ ही रुकसत ना होऊगाँ
यूँ ही रुकसत ना होऊगाँ
माना की साफ नहीं की क्या बनना है।
माना की राह मेरी लापता है।
पर चल रहा हुँ मैं।
जो मिल रहा जीवन की बेहतरी के लिये।
ले रहा हूँ मैं, सहेज रहा हूँ मैं।।
मन करता नहीं रूकने को।
हर दिन, हर पल कोशिश करता हूँ जीने को।
कि कर दिखाऊँ कुछ अद्वितीय सा हो।
मेरे समाज इस दुनियां में कुछ खास हो।
अभी बाकि है सफ़र ज़िंदगी का बहुत।।
अभी सपने पुरे करने है मेरे बहुत।
यूँ ही रुकसत ना होऊगाँ दुनिया से।
इस दुनियां में अपना नाम करना है।
अभी बहुत काम करना है।
-कविता रानी।
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