हे राही




हे राही 


हे राही पंखो को हवा दो।।

जोङ सको जमीन को इतना दम भरो ।

फिर सको आसमान में, इतनी ऊँचाई पाओ तुम।

देख सको शिखर को,ऐसी नजर बनाओ तुम।।

हे राही कदमों को तेज रखो।।

छुट जाये पिछे सब,इतना आगे बढ़ो।

रह जाये दूर सब,इतनी गति रखो तुम।।

छु लो लक्ष्य अपना,तब तक ना रुको तुम।।

हे राही मेरी भी सुन लो तुम।।

मैं अकेला,अनुभवी शब्द सुनाता हूँ। ।

कोई साथ नहीं होगा जो तुम अकेले हारे बैठे होगे।

कोई पास नहीं होगा जो तुम उदास ,बेसहारे होगे।

कोई पुछने ना आयेगा जब मायुसी का मुखोटा होगा। 

कोई सुनने ना आयेगा जब भाग्य तुम्हरा खोटा होगा। ।

तो हे राही मंजिल के मतवाले बन।

इस धरा,चाँद के दिवाने बन।

जो जड़वत दृढ़ता की सिख दे।

इस नश्वर काया को ठिस दे।

तु मंजिल की आन बन,तु मंजिल की जान बन।

फिर देख ये धरा तेरी होगी,ये जग तेरा होगा,ये सब तेरा होगा।।


Kavitarani1 

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