मुर्खो में बसेरा मेरा
मुर्खो में बसेरा मेरा
बंदिश में लगता है सवेरा।
दोपहर में होता सबका पेहरा।
सुनना चाहूँ या ना,हर कोई कुछ कह रहा।
अब पक चुका हूँ रह इन में मैं।
अब लग रहा मूर्खों में बसेरा मेरा।
आदत नहीं यूँ रहने की।
ना आदत है यूँ सुनने की।
जाने क्यूँ खुद पर ना चल रहा वश मेरा।
रहना पड़ रहा साथ,रह अकेला।
अभी मूर्खों में बसेरा मेरा। ।
जाने क्या कर रहा हूँ।
जाने कैसे रह रहा हूँ।
जो सोजा वैसा हो नहीं रहा।
मन से आती आवाज और मैं कह रहा।
मूर्खों में बसेरा मेरा। ।
साथ समझ,साथ देता रहता हूँ।
जाने कैसे अपने कल को सहता हूँ।
जो कहूँ किसी को की है वो मेरा।
लगता है गलती बड़ी में कर रहा।
क्योंकि लगता रहता है आजकल मुझे।
हे मूर्खों में बसेरा मेरा। ।
Kavitarani1
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