चल रहा हूँ मैं | Chal rha hu main
जीवन सफर किसी कहानी का कथानक होता है। एक कहानी केवल पात्र के गुणों और सफलताओं को लेकर नहीं बनती बल्कि जीवन के पूरे सफर के बारे में होती है।
चल रहा हूँ मैं
कुछ सायों से, कुछ हम सायों से मिल रहा हूँ मैं।
रूकना चाहूँ एक ठोर पर,
पर दर-दर भटक रहा हूँ मैं।।
सफर ऐ जिंदगी चल रहा हूँ मैं।।
कसमकस सी छिड़ी है मन के कोनों में।
हर दिन मन को समझ रहा हूँ मैं।
रूठे लोगो को मनाने को।
अपनी बिगड़ी बनाने को।
मेरे घावों को भूल रहा हूँ मैं।
सबको माफ कर आगे बढ़ रहा।
सफर ऐ जिंदगी चल रहा हूँ मैं।।
फिर नये सफर को चल रहा हूँ मैं।
मन को बार-बार समझ रहा हूँ मैं।
है यही जिंदगी।
है यही बंदगी।
इसी को जी रहा हूँ मैं।
अजनबियों को अपना मान रहा।
आगे बढ़ रहा हूँ मैं।
सफर ए जिंदगी चल रहा हूँ मैं ।।
Kavitarani11
22
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें