दोगले लोग | Dogale log | Fraud people
पता नहीं मेरी समझ बढ़ गयी।
या मेरे काम बढ़ गये।
पर ना चाहते हुए भी,
लोगो से मेरे काम बढ़ गये।
कितने मिठे बोलते है,
जब उनसे कोई काम ना पढ़ता ।
एक कागज क्या मांगा सारा मिठा,
कड़वा कर दिया।
बड़े दोगले लोग मिलते है आज कल।
समझ ये नहीं आता,
धरा की इस छाया में।
हरियाली मनोहारी वातावरण में।
कैसे ये परपीङन सुखी लोग़ पलते हैं।
पढ़ा और सुना जिस तपोभूमि की हमनें,
यहाँ कैसे ऐसे लोग रहते है।
दुसरो के दुःख में सुख खोजते हैं।
दुखी को और दुखी करते हैं।
रहते अच्छे से,
पर पीठ पिछे दगा करते हैं।
इस धरा पर मैंने देखे।
बस दोगले लोग रहते।।
Kavitarani1
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